ॐ जय शिव ओमकारा आरती
भगवान शिव की आरती:
मन की मुरादें पूरी करने का जादू! कहते हैं कि 'शिव शंभू सब पर कृपा बरसाते हैं!' तो क्यों न हो? आखिर वो भगवान शिव हैं, जो सबके कष्ट दूर करते हैं. अब उनकी कृपा पाने का सबसे बेहतरीन तरीका है भगवान शिव की आरती. तो आखिर शिव की आरती इतनी खास क्यों है?
दिलों की तृप्ति:
मानो या न मानो, लेकिन भगवान शिव की आरती एक ऐसा मंत्र है जो सीधा कानों तक जाता है. और भगवान जो भी सुनते हैं, तुरंत आपकी मदद के लिए तैयार हो जाते हैं. घर में शांति: जब भगवान शिव की कृपा मिलती है, तो घर में एक अलग ही शांति होती है. लड़ाई-झगड़े दूर भागते हैं और खुशियों का माहौल बनता है.
समृद्धि का वरदान:
भगवान शिव धन के देवता भी हैं. उनकी कृपा से घर में कभी पैसों की कमी नहीं होती.
मन को शांत करने का अचूक उपाय: आजकल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में मन अशांत रहता है. भगवान शिव की आरती गाने से मन शांत होता है और तनाव दूर होता है. मजेदार बात ये है कि…!
भगवान शिव को खुश करने के लिए महंगे उपहार देने की जरूरत नहीं है। बस शांत मन और भक्ति ही काफी है। अगर आरती में थोड़ी गलती भी हो जाए तो घबराने की जरूरत नहीं है।
भगवान शिव इस मामले में बहुत सरल हैं, आपकी भक्ति देखकर वो सबको माफ कर देते हैं। अगर भगवान शिव की आरती गाते वक्त आपका मन थोड़ा भटक जाए तो कोई बात नहीं। बस अपना ध्यान वापस लाएं और गाते रहें।
इसलिए अगली बार जब आप भगवान शिव की आरती गाएं तो याद रखें…! ये सिर्फ एक रस्म नहीं है, ये भगवान शिव से जुड़ने का एक खास तरीका है।
इस दौरान आपकी आत्मा शिव से एकाकार हो जाती है। अब आप ही सोचिए, इतने सारे फायदे तो देर किस बात की? आज से ही शिव की आरती गाना शुरू कर दीजिए और अपने जीवन में खुशियों का स्वागत कीजिए। शिव शंभू सब पर कृपा बरसाते हैं!
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ॐ जय शिव ओंकारा, भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकाराब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।।
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