Shri Krishna Avatar Katha
मैं जय श्री कृष्णा दोस्तों तो सबसे पहले तो आपको और आपके पूरे परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं भगवान कृष्ण आपको और आपके पूरे परिवार को हमेशा खुश रखें दोस्तों आज मैं कृष्ण अवतार की कथा प्रस्तुत करने जा रहा हूं तो अंत तक जरुर पड़े .
वहां पर युग में जब धरती पर अधर्म का बोझ बढ़ता जा रहा था राक्षसों ने धरती पर हाहाकार मचा रखा था इस बात से बहुत परेशान होकर धरती मां गाय का रूप धारण करके ब्रह्माजी के पास गई,
और उनसे कहा हे परमपिता ब्रह्मा आप मेरी रक्षा करें गौ रक्षकों का आतंक मुझ पर बढ़ता जा रहा है इन्हें खत्म करें धरती मां की इस बात का
ब्रहमा जी के पास कोई समाधान नहीं था में ब्रहमा जी धरती माता और सभी देवतागण को लेकर भगवान विष्णु के निवास स्थान शिरसागर पहुंचे उस समय वहां शेषनाग पर लेटे हुए आराम कर रहे थे ,
वहां पहुंचकर सभी ने उन्हें प्रणाम किया और धरती पर हो रहे बालों के बारे में बताया ब्रहमा जी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने धरती माता से कहा हे देवी आप परेशान ना हो मैं मनुष्य के रूप में
जल्द ही पृथ्वी लोक पर अवतार लूंगा और पाप को खत्म कर उनका या ब्रहमा जी ने सभी देवताओं से कहा अब आप लोगों को यह वंश में जन्म लेने का समय आ गया है ब्रह्मा जी ने स्वर्ग की अप्सराओं को ब्रज
की गोपियां के घर जन्म लेने के लिए कहा और ऋषि-मुनियों को वालों के घर दूध देने वाली गाय बनने के लिए कहा मैं मथुरा के राजा उग्रसेन का बेटा कंस बहुत अत्याचारी था परंतु वह अपनी बहन
देवकी से बहुत स्नेह करता था जब देवकी का विवाह हुआ तो कंस ने अपनी बहन और उसके पति वासुदेव के रथ का सारथी बनने का निर्णय किया जब वह राख रहा था तभी उसे एक आकाशवाणी
सुनाई दी तैमूर कंजूस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है उसके घर से पैदा होने वाली आठवी संतान तेरी मौत का कारण बनेगी यह आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोध में आ गया और देश की को मारने के लिए अपनी
तलवार उठा लिया तभी वासुदेव ने कंस का हाथ पकड़ लिया और बोले एक कंस देवकी की अभी अभी विवाह हुआ है इसने एक नए जीवन में प्रवेश किया है मेरा तुमसे आग्रह है इसे मत मारो एक
हंस प्रत्येक शरीर का नाश होता है चाहे पांच हो या सौर वर्ष बाहर कि आप सभी की मृत्यु होनी निश्चित है फिर तुम अपनी बहन की मारने का पाप अपने सिर पर क्यों लेना चाहते हो कंस ने कहा
वासुदेव आप क्या व्यर्थ की बातें करते हो आकाशवाणी ने स्पष्ट कहा था कि देवकी का आठवां बच्चा मेरा वध करेगा लेकिन मैं उसके स्रोत को ही मिटा दूंगा तो भला उससे बच्चे का जन्म ही कैसे होगा
एक दुष्ट कंस पर वासुदेव की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था कि वह दोबारा देव की को मारने ही वाला था तब वासुदेव ने मंच से कहा मैं वचन देता हूं कि हमारे जो भी बच्चे होंगे मैं उस बच्चे को
तुम्हें सौंप दूंगा वहां सदैव सत्य वादी थे इसलिए कंस को उनकी बातों पर विश्वास हो गया और उन्हें छोड़ दिया कुछ समय बाद देवकी और वासुदेव का पहला बच्चा जन्म लेता है वह दोनों बहुत
आनंदित होते हैं तभी वासुदेव देवकी से बोलते हैं इसे कंस के पास ले जाना होगा कुछ देर की बच्चे को देने से मना करती है तो वासुदेव बोलते हैं प्रिय मैंने कंस को वचन दिया है
है और वासुदेव बच्चे को लेकर कंस के पास गए कल से बोले हे अर्न्स मैंने अपना वचन पूरा किया यह लोग हमारा पहला बच्चा कंस मुस्कराया और बोला इस बच्चे को ले जाओ इस बच्चे से मुझे कोई भाई
नहीं है कंस ने सोचा मुझे तो देवकी का आठवां बच्चा चाहिए और वह वासुदेव को वापस भेज कर मन-ही-मन प्रसन्न और संतुष्ट होकर बैठ गया तभी वहां नारद मुनि आते हैं कंस उन्हें देखकर प्रणाम
करता है नारद ने कहा है कल तुमने यह क्या किया कोई भी बालक आठवां हो सकता है यदि आठवें बालक को पहला माना जाए तो यह पहला बालक आठवां माना जाएगा कंस नारद की बातों में आ गया और क्रोध से बोला देवकी
और वासुदेव को कैद कर काल कोठरी में डाल दो उसके पिता उग्रसेन ने उसे समझाना चाहा परंतु वह उन्हें भी बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया और खुद मत में का राजा बन गया देव की जब भी
बच्चे को जन्म देती थी कंस उन्हें मरवा देता था इस प्रकार उसने देवकी के साथ बच्चों को मार डाला कुछ समय बाद बेबी फिर से गर्भवती हुई कारागार के पहरेदारों ने जब यह देखा तो कंस को जाकर
बताया कंस बेचैन था वह खुद देखने के लिए कारागार में गया वहां जाकर देखा कि देव की का मुख चमक रहा है उसने सोचा कि यहीं वह अथवा बच्चा होगा जो मेरी मौत का कारण बने का या कंस को क्रूरता देव की के प्रति दिन
प्रति दिन बढ़ती जा रही थी एक दिन अर्द्धरात्रि के समय जब कंस और उसका संपूर्ण महल गहरी निद्रा में सो रहा था स्वर्ग में अप्सराओं के नृत्य करने लगी और सुरमई गीत गाने लगे वसुदेव और
देवकी उदासीन होकर भूमि पर बैठे थे तभी एकाएक देखी अचेत होकर गिर पड़ी को कारागार के उस कक्ष में एक तेज प्रकाश आया और वासुदेव और देवकी की आंखें चौंधिया गई क्योंकि उनके
समक्ष भगवान नारायण अपने देवी रूप में प्रकट हुए थे वसुदेव और देवकी ने भगवान विष्णु को प्रणाम किया कि भगवान नारायण ने कहा मैं पृथ्वी पर हो रहे बालों को समाप्त करने आया हूं वह सदैव
से बोलते हैं यह पिता आप मुझे अपने मित्र नंद के घर गोपाल ने गांव उनकी पत्नी ने अभी एक कन्या को जन्म दिया है आप मेरे बदले उसे यहां लेकर आ जाओ आपके मार्ग में कोई बाधा नहीं आएगी
फिर भगवान विष्णु एक बच्चे के रूप लेकर देश की के बगल में आ गए माता देवकी अपने बच्चे को देखकर आत्मविभोर हो उठी कि वासुदेव ने चुपचाप देव की से शिशु को ले लिया उनके हाथों की
बेड़ियों खोल कर नीचे गिर पड़ी और कारागार के द्वार अपने आप खुल गई वह मथुरा के निर्जन मार्ग से होते हुए यमुना तट पर जा पहुंचे यमुना नदी को देखा तो उसने बाढ़ आई थी उन्होंने सोचा
मैं इस नदी को कैसे पार करूंगा अचानक नदी का जल एक तरफ हो गया और उन्हें जाने के लिए मार दे दिया कि वासुदेव बच्चे के साथ नदी पार करने लगे और बच्चे को ऊपर उठा लिया ताकि जल
उस तक न पहुंच पाएं शेषनाग ने नदी पार करते हुए बच्चे को छत्र प्रदान किए वासुदेव यमुना नदी पार कर गुरुकुल पहुंचे और उन्होंने नंद के घर में प्रवेश किया कि वासुदेव ने अपने बच्चे को यशोदा
के पास रख दिया और कन्या को लेकर चल पड़े वासुदेव मथुरा लौट गए वार्ड पार्षद अभी तक गहरी निद्रा में थे वसुदेव के आते ही कारावास के द्वार बिना किसी आवाज़ के बंद हो गए गोकुल में सुबह हुई तो चारों तरफ
खुशियां ही खुशियां छाई हुई थी नंद के घर पुत्र ने जन्म लिया था पूरे गोकुल को सजाया गया ब्राह्मणों ने वेद मंत्रों का उच्चारण किए और अग्नि में आहूति दी ढील कि यदुवंश के सभी लोग अपने माथे पर
चंदन के तिलक लगाएं नृत्य कर रहे थे स्त्रियां दूध-दही और मक्खन लेकर नंद के घर पहुंची माता यशोदा नन्हे शिशु को देखकर बहुत प्रसन्न न थी और उसने पूर्ण दृष्टि से बाहर बात सिर्फ नन्हे शिशु
को ही देखे जा रही थी दोस्तों हमारी आज की कृष्णावतार प्रस्तुत है यही समाप्त होता है .