India's Most Mysterious Krishna Temple
ग्रहण एक ऐसा समय होता है जब देशभर के मंदिर बंद हो जाते हैं, वहां कोई पूजा-पाठ नहीं होता और ना ही भगवान को भोग लगाया जाता है, लेकिन केरल के तिरुवरुपु में बना श्री कृष्ण का मंदिर थोड़ा अलग है,
एक बार सूर्य ग्रहण के दिन यह मंदिर भी बाकी मंडुरु की तरह बंद कर दिया गया था, लेकिन अगले दिन जब मंदिर के पुजारी गर्ग मंदिर में आए तो श्री कृष्ण की मूर्ति देखकर दंग रह गए और मूर्ति पहले से काफी पतली हो गई थी।
मीना चिल नदी के तट पर स्थित यह मंदिर अपने खूबसूरत आकार, बनावट और यहां मनाए जाने वाले त्योहारों के लिए जाना जाता है, लेकिन इस मंदिर की सबसे खास बात है सूर्य ग्रहण के दिन यहां स्थापित श्री कृष्ण की मूर्ति।
इस घटना से हर कोई हैरान रह गया था। उस समय मंदिर में दर्शन करने आए आदि शंकराचार्य ने बताया था कि श्री कृष्ण के दिनभर भूखे रहने के कारण ऐसा हुआ था और इसीलिए तब से इस मंदिर में हर दिन समय पर भोग लगाया जाता है, चाहे वह सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण।
यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पहला भोग रात्रि 3:00 बजे लगाया जाता है और सही समय पर भगवान को भोग लगाने के लिए रात को मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर प्रातः 2:00 बजे खुलता है और इसीलिए यहां के पुजारी मंदिर की चाबी और एक हथौड़ा अपने हाथ में लेकर जाते हैं ताकि अगर गलती से चाबी से दरवाजा नहीं खुल पाए तो वे तुरंत हथौड़े से ताला तोड़कर अंदर जा सकें।
श्री कृष्ण की यह मूर्ति भगवान के उस रूप को दर्शाती है जिसमें उन्होंने कंस का वध किया था। कहा जाता है कि युद्ध के बाद श्री कृष्ण को बहुत भूख लगी थी और इसीलिए इस मंदिर में सही समय पर भोग लगाना जरूरी है। अगर समय पर भोग न लगाया जाए तो भूख के कारण मूर्ति दुबली होने लगती है।
इस मंदिर में स्थापित श्री कृष्ण की मूर्ति से जुड़ी कई कहानियां हैं लेकिन उनमें से सबसे प्रचलित कहानी यह है कि स्वामी बिलकुल मंगलम स्वामी समुद्र पार कर रहे थे और पानी में उतरने का प्रयास करने पर अचानक पानी सूख गया और उन्हें श्री कृष्ण की पांच फीट लंबी मूर्ति दिखाई दी।
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उन्होंने मूर्ति को एक नाव में रखा और आगे बढ़ गए। कुछ समय बाद जब वे तिरुवरूप गांव पहुंचे तो उन्होंने मूर्ति को एक स्थान पर रख दिया और स्वयं स्नान करने चले गए। वापस आते समय जब उन्होंने मूर्ति को उठाने का प्रयास किया तो वह हिली नहीं। आज फिर उसी स्थान पर श्री कृष्ण का मंदिर बना हुआ है।
मान्यता है कि स्वामी जी को समुद्र में मिली यह मूर्ति महाभारत से संबंधित है और यह मूर्ति स्वयं श्री कृष्ण ने पांडवों को उपहार में दी थी, फिर यह समुद्र के अंदर कैसे पहुंची?
कई स्थानीय लोगों का मानना है कि पांडवों से अपना राज्य छिन जाने के बाद जब पांडव वनवास पर जा रहे थे तो उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वे उन्हें अपनी एक मूर्ति दें, ताकि पांडवों को यह महसूस हो कि श्री कृष्ण उनकी यात्रा में उनके साथ हैं। उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें यह मूर्ति भेंट की।
अपने वनवास के दौरान पांडवों ने पूरे 14 वर्षों तक इस मूर्ति की पूजा की। जब पांडवों का वनवास समाप्त हुआ तो वे इस मूर्ति को अपने साथ ले जाने लगे, लेकिन उस समय वे जंगल में रह रहे थे तो वहां के मछुआरों ने उनसे अनुरोध किया कि वे यह मूर्ति उनके पास ही छोड़ दें।
मछुआरों की भक्ति को देखकर पांडवों ने अपने गांव में श्री कृष्ण की स्मृति स्थापित की। मछुआरों ने कई सालों तक इस मूर्ति की पूजा की, लेकिन अचानक उन पर बहुत बारिश हुई। इस मूर्ति से परेशानियां आने लगीं। कई परेशानियों का सामना करने के बाद, वे अपनी समस्या लेकर एक साधु के पास गए।
तब साधु ने उनसे कहा कि वे श्री कृष्ण की पूजा ठीक से नहीं कर रहे हैं, इसलिए उन्हें इस मूर्ति को विसर्जित कर देना चाहिए। मच्छरों ने कई सालों तक ऐसा ही किया। श्री कृष्ण की मूर्ति पानी में डूबी रही और फिर इस मूर्ति को पानी में डुबो दिया गया। कृष्ण मंदिर भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिनसे जुड़ी बातें हमें आज भी हैरान करती हैं।