Gudi Padwa Kaise Manaya Jata Hai : क्या है इसकी पूजा विधि और महत्व? | Significance of Gudi Padwa Festival 2024

Gudi Padwa Kaise Manaya Jata Hai : क्या है इसकी पूजा विधि और महत्व? | Significance of Gudi Padwa Festival 2024






Gudi Padwa Kaise Manaya Jata Hai  क्या है इसकी पूजा विधि और महत्व  Significance of Gudi Padwa Festival 2024




मित्रों हमारे सनातन धर्म में प्रतिवर्ष अनेक पर मनाए जाते हैं और हर वर्ष हम उतने ही उत्साह और उल्लास के साथ इन पर्वों का स्वागत करते हैं इन्हीं प्रभु में एक है गुड़ी 

पड़वा गुड़ी पड़वा ऐसा प्रभाव जिसकी शुरुआत के साथ सनातन धर्म की कई सारी कहानियां चुनी हैं महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को विशेष रूप से बनाया जाता है 9 दिन तक 

लने वाले इस त्योहार में पूजा विशेष तरह के प्रसाद आदि का बहुत महत्व है तो चली मित्रों आज हम आपको अपनी स्पीड में गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथाएं उससे जुड़ी परंपराएं महत्व और रीति-रिवाज से आपको अवगत कराएंगे

दोस्तों आपको बता दूं कि गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी कि चैत्र महीने के पहले दिन बनाया जाता है ,विजय और पड़वा का मतलब होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का 

पहला दिन इस पर्व को वर्ष प्रतिपदा या योग गांधी और गांधी के नाम से भी जाना जाता है परंपराएं और रीति रिवाज जाने से पहले आइए जानते हैं जुड़ी पौराणिक कथाएं क्या है 


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पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग अर्थात रामायण काल में जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था और जब भगवान श्रीराम को पता चला कि लंकापति

रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो वह उन्हें खोजते हुए दक्षिण भारत पहुंचे जहां उस समय राजा बलि का शासन हुआ करता था वहां एक दिन प्रभु श्रीराम और 

लक्ष्मण की मुलाकात सुग्रीव से हुई सुग्रीव ने श्री राम को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की इसके बाद भगवान श्री 

राम ने बालि का वध कर दक्षिण कि लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया और वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा ऐसा माना जाता है कि तभी से इस दिन खड़ी यानि विजय 

पताका फहराई जाती है इस दिन लोग आम के पत्तों से घर को सजाते हैं आंध्रप्रदेश

कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी उदास होता है सृष्टि के निर्माण का यह दैनिक भारती के लिए अहम है जिसमें 12 महीने इस प्रकार चैत्र वैशाख ज्येष्ठ अषाड़ श्रावन 

भाद्रपद अश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष पौष माघ फागुन तो अगर हम भारतीय संस्कृति यानी कि हिंदू कैलेंडर की बात करें तो हमारा नववर्ष गुड़ी पड़वा से शुरू होता है धार्मिक 

मान्यता के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए नव संवतसर आता है इसके अलावा महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी तिथि सूर्योदय से सूर्यास्त तक के दिन महीने और वर्ष की रचना करते हुए पंचांग

और हां कुछ विद्वानों का मानना यह भी है कि शालीवाहन नाम के कुमार के बेटे को शत्रु बहुत परेशान करते थे लेकिन अकेला होने के चलते हुए उन का विरोध करने में 

सक्षम नहीं था तब उसने एक युक्ति निकाली और सेना से लड़ने के लिए मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उसके ऊपर पानी छिड़क दिया 

और उससे इनको में प्राण फूंक दिए ऐसा कहा जाता है कि जब शत्रु आए तो कुमार के बेटे ने जिस सेना को बनाया था वह सेना के साथ मिलकर उन्होंने शत्रु के साथ युद्ध किया और विजय प्राप्त की तब से शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ था इस दिन से महाराष्ट्र में मराठी


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पंचांग के अनुसार नया साल आरंभ हो जाता है इसका पहला महीना चैत्र यानी कि चेतन ने खुशहाली का होता है हिंदू कैलेंडर का आखिरी महीना फागुन होता है फाल्गुन के 

महीने में होली का त्योहार मनाया जाता है सारी सूखी लकड़ियां चलाई जाती हैं चैत्र के महीने से पेड़ों पर नए पत्ते आने शुरू हो जाते हैं इसलिए भी इस महीने को बहुत खास 

माना जाता है कि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी इसे नए साल के रूप में मनाया जाता है गुड़ी पड़वा पर्व को लेकर जहां अलग अलग तरह की कथाएं प्रचलित हैं वहीं 

आंध्र प्रदेश में गुड़ी पड़वा के अवसर पर इस दिन विशेष प्रकार का

प्रसाद भी वितरित किया जाता है ऐसा कहा जाता है कि जो भी बिना कुछ खाए-पिए इस प्रसाद को ग्रहण करता है वह सदा निरोगी रहता है बीमारियों से दूर रहती हैं भारत 

के महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में इस पर को नौ दिनों तक विशेष विधि-विधान और पूजा के साथ बनाने का चलन है इस उत्सव का समापन रामनवमी के 

दिन होता है चैत्र मास में आने वाले नवरात्र को वासंतिक नवरात्र और चैत्र नवरात्रि भी कहा जाता है गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं रंगोली और 

तोरण द्वार बनाकर घरों को सजाते हैं गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घर के मुख्य द्वार

के आगे एक घड़ी यही झंडा रखते हैं घड़ी के ऊपर नीम के पत्ते और बता से दोनों लगाना बहुत शुभ माना जाता है कि नीम से मन की शुक्रवार दूर हो जाती है और बता 

समोसे आने वाली जिंदगी में और भी मिठास पड़ जाती है वह परिवार के इस पर तरह-तरह के पकवान घर पर ही बनाए जाते हैं जैसे कि श्रीकंठ पूरी बांसुरी पूरी की पूरी या 

पूरनपोली जैसे कई पकवान बनते हैं इस पर लोग विशेष तौर पर पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं जिसमें औरतें नववारी साड़ी या पठानी साड़ी पहन कर सजती संवरती हैं जबकि पुरुष 

कुर्ता पजामा धोती-कुर्ता पहनते हैं गुड़ी पड़वा की पूजा के लिए जिन चीजों की आवश्यकता है वह

इस प्रकार है पूल और कलर से रंगोली पुष्प खिले फूल आम के पत्ते लाल कपड़ा नीम के पत्ते नारियल नया ब्लाऊज पीस बॉर्डर वाली साड़ी या फिर चुन्नी पतासे की माला 

कोण अर्थात यदि और आम के पत्तों की माला मिठाई पीतल तांबा चांदी का कलश चौकी और साथ ही लंबी बात की जल्दी गुड़ी पड़वा के दिन सुबह उठकर लोग सबसे 

पहले नीम का पत्ता खाते हैं कहा जाता है इस पत्ते को खाने से शरीर की सब बीमारियां दूर हो जाती हैं रंगोली और तुरंत लगाने के बाद हनुमान की पूजा की जाती है इसके 

बाद घड़ी लगाने या भरने की तैयारी की जाती है सबसे पहले एक बात को लेकर उसे साफ करके

सब्सक्राइब वाली साड़ी उसके ऊपर आम के पत्ते नीम के पत्ते और एक साथ बांधी जाती इसके ऊपर तांबे के कलश रखा जाता कलश के ऊपर स्वास्थ्य और हल्दी 

कुमकुम फिर से के ऊपर बाहर करें पूर्व दिशा की चौकी पर लाल कपड़ा जाता है कि उस लाल कपड़े पर एक नारियल और फूल रखा जाता है इसके बाद कुछ लोग * 

स्थापित करने के लिए गमलें का उपयोग करते हैं फिर घड़ी के सामने मीठे पकवान का भोग लगाते हैं किसी किसी घर में घड़ी की पूजा पंडित जी करवाते हैं और कुछ घरों में 

घर के बड़े-बुजुर्ग पूजा करवाते हैं गुड़ी पड़वा का त्योहार सब लोग मिलकर खुशी खुशी मनाते हैं अपने रिश्तेदारों के यहां जाकर उन्हें नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं इस तरह 

से यह पूरी प्रभाव का त्योहार पूरे महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है साथ ही शाम होने से पहले घड़ी को उतारा जाता है और उस पर लगी बता से की माला को पूरे घर में बांटा जाता है तो मित्रों यह थी हमारी गुड़ी पड़वा की संपूर्ण कथा.


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