जानिए, क्या है गायत्री मंत्र का अर्थ यजुर्वेद के अनुसार |
गायत्री मंत्र इस मंत्र से तो हम सभी भली भांति परिचित हैं आपने कभी ना कभी यह मंत्र बोला बस सुना अवश्य होगा ऐसा क्या है इस मंत्र में की इसकी महिमा सनातन धर्म
में बहुत है ऐसा कहा जाता है की यदि कोई व्यक्ति यज्ञ करना ना जानता हो उसके मंत्र ना जानता हो तो भी वह गायत्री मंत्र से यज्ञ कर सकता है कई वेदों में भी इस मंत्र का
बार-बार उच्चारण किया जाता है ऐसा क्या है इस मंत्र में आज जाने का प्रयास करेंगे नमस्कार ओम भर भुवा स्वाहा तत्सवितुर्वरेंयं भर्गो देवासी धीमहि दियो एन प्रचोदयात्
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कहां उपस्थित है और मनुष्य को इसका ज्ञान कहां से हुआ यह मंत्र ऋग्वेद यजुर्वेद एवं वेद में तो इस मंत्र का चार बार प्रयोग किया की इस मंत्र के ऋषि विश्वामित्र हैं इस मंत्र
के देव सविता देव हैं एवं इस मंत्र में गायत्री छंद उपस्थित है और भी कई ऐसे मंत्र हैं जहां गायत्री छंद उपस्थित है किंतु यह मंत्र सर्व प्रसिद्ध है क्यों यह हम इसका अर्थ
जानकारी पता कर सकते हैं यहां यजुर्वेद में बहुत ही सरल शब्दों में
इस मंत्र का अर्थ दिया गया है वो मैं आपके लिए पढ़ रही हूं कर्म विद्या उपासना विधाम स्नान तट इंद्रिय ग्राहम parokshwarya प्रदर्शन देवस्य कम्युनिस्ट धीमहि dhyaayin
दिया प्रज्ञा यह एन अस्मा कम प्रचोदयात् प्रेरक यह तो हुआ संस्कृत शब्द की ओर चलते हैं जो की हम सभी आसानी से सरलता पूर्वक समझ सके वह है इस मंत्र का हिंदी अर्थ
तो शुरू करते हैं मनुष्यों जैसे हम लोग कर्मकांड की विद्या उपासना कांड की विद्या और स्व ज्ञान कांड के विद्या को संग्रह पूर्वक पढ़ के यह जो
ना हमारी buddhiyon को प्रचोदयात् प्रेरणा करें वैसे तुम लोग भी इसका ध्यान करो ऋषि भावार्थ लिखते हैं की इस मंत्र है जो मनुष्य कर्म उपासना और ज्ञान संबंधी विधाओं
का सम्यक ग्रहण कर संपूर्ण ऐश्वर्या से युक्त परमात्मा के साथ अपने आत्मा को युक्त करते धर्म ऐश्वर्या और सुखों को प्राप्त होते हैं उनको अंतर्यामी जगदीश्वर आप ही धर्म
के अनुसार और धर्म का त्याग करने का सदैव चाहते हैं किंतु और भी विद्वानों ने अपनी तरह से इस मंत्र को जानने का प्रयास किया एवं उसके अर्थ भी पड़े वह हालांकि यह
मंत्र बहुत सरल शब्दों में यहां बताया को भी हम यहां सम्मिलित करें तो बहुत ही सरलता से हमें यह मंत्र समझ ए सकता है को यहां पर कर्म विद्या उपासना विद्या एवं
ज्ञान विद्या कहा गया है कुछ लोगों ने धरती लोक आकाश लोक एवं धूल लोक के तुले भी माना है कुछ ने कहा है की अर्थ है वह ईश्वर जो की हमें उत्पन्न करता है वह ईश्वर
जो की हमें सुख देता है वह ईश्वर जो की चेतन स्वरूप है तो यहां से हम
जाने तो वह ईश्वर जो की हमें कर्म करने के लिए प्रेरित करता है तो यहां से पृथ्वी और
कर्म को हम रिलेट कर सकते हैं दूसरा वह ईश्वर जो की हमें उपासना के लिए प्रेरित करता है उपासना सदैव हम अपने से ऊंचे या एक ऐसे ईश्वर की करते हैं जो की
सर्वव्यापी है अब ऐसी कौन सी जगह है वह आकाश वह सर्वव्यापी है समस्त जगह आकाश उपस्थित है या यह का लीजिए स्पेस हर जगह है तो वह ईश्वर जो की हमें
उपासना विद्या के लिए प्रेरित करता है या यह का लीजिए जो की अंतरिक्ष के समान है तीसरा वह ईश्वर जो की हमें ज्ञान विद्या के लिए प्रेरित करता है
जो स्वयं प्रकाशमान है तो यहां से हम दोनों और ज्ञान को कनेक्ट कर सकते हैं तो सरल शब्दों में कहा जाए वह ईश्वर हमें कर्म उपासना विज्ञान के लिए प्रेरित करता है
तट सावितुर वरेण्यम यहां इसका क्या अर्थ है लिए देखते हैं तट वह जो की परोक्ष है इंद्रियों द्वारा जिसे हम ग्रहण नहीं तो यहां पर ईश्वर की बात हो रही है सब यहां ईश्वर
के सविता रूप की प्रार्थना की गई है इसलिए कुछ लोग इस मंत्र को सावित्री मंत्र भी बोलते हैं क्योंकि यह ईश्वर के सविता रूप की उपासना करता है सभ्यता का अर्थ होता है उत्पन्न करने वाला जीवन देने वाला एवं सकल ऐश्वर्या प्रदान करने वाला
ईश्वर tatsavito मतलब वह ईश्वर जो की परोक्ष है इंद्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता वह जो की हमें उत्पन्न करता है हमें सभी ऐश्वर्या प्रदान करता है varniyam
वह वर्णन करने योग्य धारण करने योग्य समझने योग्य है अब यहां धारण करने का यह अर्थ है की हमने ईश्वर के अनेक रूपों को जाना है हम सभी जानते हैं की ईश्वर
सर्वव्यापी है ईश्वर सुख देने वाला है ईश्वर दया करता है ईश्वर सभी पर कृपा करता है उसके गुना को धारण करने का अर्थ यह है की हम भी दयालु बने हम भी दूसरों को सुख दे सकें तो यहां अर्थ यह हुआ की उसे ईश्वर को हम इंद्रियों
द्वारा तो नहीं जान सकते किंतु कर्म विद्या ज्ञान विद्या उपासना विद्या देने वाला उनकी और प्रेरित करने वाला वही प्रदान करता है उसी का हमें वर्णन करना चाहिए उसी को
हमें धारण करना चाहिए अगली लाइन में कहा गया है भर्गो देवस्य धीमहि वर्गों का अर्थ है जो की सभी दुखों को दूर करने वाला है जो की हमारे सभी तुल्य कामना के योग्य
है उनका हम ध्यान करते हैं भर्गो देवस्य धीमहि जो ईश्वर हमारे दुखों को दूर करता है वह कामना योग्य है देव समान है उनका हम सभी ध्यान करते हैं अगले पंक्ति में कहा गया है परमात्मा ही हमारी बुद्धि को प्रकाशित
प्रेरित करता है यह परमात्मा उसे किया बुद्धि को सत्य और सन्मार्ग की ओर लेकर हमने क्या सिखा ओम भर भुवा स्वाहा यहां ओम हम ईश्वर को संबोधित करने के लिए कहते
हैं ओम का अर्थ हम पहले ही एक वीडियो में जान चुके हैं की हम सदैव मंत्र से पहले ओम बोलते हैं उसका अर्थ है की यह परमात्मा के लिए संबोधन है यह मंत्र परमात्मा के
लिए कहा गया है ओम भर भुवा स्वाहा जो ईश्वर हमें कर्म विद्या उपासना विद्या एवं ज्ञान विद्या के लिए प्रेरित करते हैं इंद्रियों द्वारा तो नहीं समझा जा सकता किंतु उसे ऐश्वर्या प्रदान करने वाले उसे
जगत को उत्पन्न करने वाले ईश्वर के गुना को अपने अंदर धारण किया जा सकता है भर्गो देवस्य धीमहि जो की सभी दुखों को दूर करते हैं उसे देव तुल्य उसे ईश्वर को हम
सभी उनका ध्यान करते हैं उनको नमन करते ईश्वर हमारी buddhiyon को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें हमें सत्य का रास्ता दिखाएं एवं हमारे जीवन में खुशहाली लेकर आए हमें सदैव अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करें आशा करता
हूं की मैं अपनी बात कहने में सफल हुआ जो मैं आपको समझाना चाहता था आप लोग उसे सरल शब्दों में सरलता से समझ पाए होंगे आप इसे समझे एवं अन्य लोगों
के साथ भी इसे शेयर जरूर करें ऐसा इसलिए आवश्यक है की जब भी कोई मंत्र हम बोलते हैं अगर हम उसे भाव के साथ बोले तो उसका इफेक्ट जो है उसका जो प्रभाव
है वह बढ़ जाता है जैसे की यदि मैं आपसे कहूं की एक सेंटेंस बोलिए वह भी ऐसी लैंग्वेज में जो की आपको नहीं आती एक ऐसी भाषा जो की आप नहीं जानते उसमें
अगर आपको एक वाक्य बोलने के लिए दिया जाए तो आप केवल उसे वाक्य को बोलेंगे ना की उसके पूरे भाव के साथ हम कहेंगे किंतु यदि आपकी मातृभाषा में मैं आपको
वह वाक्य बोलने के लिए कहूं तो आप पूर्ण भाव के साथ उसे कहेंगे इसी तरह जब हम पूजा के लिए या ध्यान के लिए इस मंत्र
का प्रयोग करते हैं तो हमें यह ज्ञात अवश्य होना चाहिए की इसका क्या अर्थ है क्यों हम इस मंत्र को बोल रहे हैं आशा करता हूं आगे से जब आप इस मंत्र को बोलेंगे तो इसके पूर्ण अर्थ के साथ ही इसे उसी भावना के साथ कहेंगे .
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