चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? इस घटना के बाद मनाई जाने लगी थी चैत्र नवरात्रि ||

चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? इस घटना के बाद मनाई जाने लगी थी चैत्र नवरात्रि ||






चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? इस घटना के बाद मनाई जाने लगी थी चैत्र नवरात्रि ||


मित्रों आप सभी तो यह जानते ही होंगे की हिंदू धर्म में साल में कर नवरात्रि मने जाति है जिम चैत्र और शारदीय नवरात्रि का काफी अधिक महत्व है और आप सभी ने देखा 


होगा की नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना किया जाता है और फिर किसी मिट्टी के पत्र में जो बोट हैं लेकिन क्या आप जानते हैं की नवरात्रि के पहले दिन जो क्यों बॉय जाता है अगर नहीं तो इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पड़े

मित्रों ऐसा माना जाता है की जो बोन की परंपरा शाकंभरी देवी से जुड़ी हुई है


जिससे जुड़ी कथा का वर्णन दुर्गा सप्तशती से किया गया है दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार देवी और देवताओं की स्तुति से प्रश्न होने पर 


शाकंभरी देवी सभी देवी देवताओं से कहती है की देवताओं जब पृथ्वी पर 100 वर्षों के लिए वर्षा रुक जाएगी और पानी का अभाव हो जाएगा उसे समय मुनियों के स्तवन यानी 


स्तुति करने पर मैं पृथ्वी पर रूप में प्रकट होगी और अपने सोनी मुनियों को देखूंगी अतः मनुष्य शताक्षी नाम से मेरा कीर्तन करेंगे देवताओं उसे समय में अपने शरीर से उत्पन्न हुए शकुन द्वारा समस्त संसार का भरण पोषण करूंगी और


जब तक वर्षा नहीं होगी तब तक पेशाब ही सबके प्राणों की रक्षा करेंगे ऐसा करने के करण पृथ्वी पर शाकंभरी के नाम से मेरी खेती होगी और ऐसा मानव जाता है की देवी 


के शरीर से उत्पन्न हुए शार्क जो ही थे और इसीलिए हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कमजो के बिना अधूरा माना जाता है साथ ही यह भी माना जाता है की सृष्टि में सबसे पहले

 

फसल जो ही थी और यही वजह है की जो को हिंदू धर्म ग में पूर्ण फसल की मान्यता दी गई है हिंदू धर्म ग में वर्णित कथा के अनुसार एक बार एक गुरु बृहस्पति ने ब्रह्मा जी से सवाल किया की है ब्रह्मा नवरात्रि क्यों मने जाति है तब ब्रह्मा जी ने कहा






बृहस्पति तुम्हारे इस प्रश्न का हाल इस कथा में छुपा है बहुत साल पहले मनोहर नगर में एक अनार ब्राह्मण रहा करता था जिसका नाम पीठाधता वह देवी दुर्गा का बहुत बड़ा 

भक्ति हुआ करता था होने पर उसकी शादी हुई और फिर कुछ दोनों के बाद उसके पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया जिसका नाम सुनती रखा गया जब उसे कन्या को ज्ञान 

हुआ तो जब भी पीठात देवी दुर्गा की पूजा अर्चना करता वह कन्या वहां बैठी रहती लेकिन एक दिन वह कन्या देवी दुर्गा की पूजा में बैठने की बजे अपनी सहेलियां सॉन्ग खेलने चली गई यह देख पीठाधी अपनी पुत्री पर क्रोधित हो गया

और उसके पास जाकर खाने लगा फिर दुष्ट आज तुमने मां दुर्गा की पूजा क्यों नहीं की इस अपराध के लिए मैं तेरी शादी एक कुष्ठ रोग से ग्रसित युवक से कर दूंगा पिता की 

बातें सुनकर सुनती को बड़ा दुख हुआ लेकिन वह अपने पिता से बोली पिताजी में आपकी पुत्री हूं और आप जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं अगर मेरे भाग में कुष्ठ रोग के 

पति ही लिखा होगा तो मैं क्या कर शक्ति हूं क्योंकि जो इंसान जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि गम करना मनुष्य के अधीन है पर फल देना ईश्वर 

के अधीन है अपनी पुत्री सुनती के मुख से ऐसी बातें सुनकर पीठात का क्रोध और बाढ़गया और इसी क्रोध में आकर उसने कुछ दोनों बाद अपनी कन्या का विवाह एक 

खुश रोगी से कर दिया विवाह के बाद जब सुनती अपने ससुराल को जान लगी तो पीठात ने कहा की बेटा अपने कर्मों का फल भिगो देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या 

करती हो पिता की बातें सुनकर सुनती सोने लगी क्या सच में मेरा भाग्य इतना खराब है जो मुझे कुछ रोगी से ग्रस्त पति मिला फिर वह अपने पति के साथ वन में चली गई 

और फिर अगले दिन देवी दुर्गा सुनती के सामने प्रकट हुई और बोली है पुत्री में तुमसे प्रश्न हूं और तुम जो चाहे वह वरदान मांग शक्ति हो तब सुनती बोली की है देवी आप कौन हैं मैंने आपको आज


से पहले कभी नहीं देखा तब मां दुर्गा बोली है पुत्री मैं आदिशक्ति भगवती हूं और मैं तुम्हारे पूर्व जन्म के पढ़ने के प्रभाव से प्रश्न हूं देवी दुर्गा की बातें सुनकर सुनती ने कहा 

मां में पिछले जन्म में कौन थी कृपया मुझे विस्तार से बताइए देवी बोली पुत्री पिछले जन्म में तुम बेल की पत्नी थी एक दिन तुम्हारे पति ने चोरी की और सिपहिया ने तुम 

दोनों को पड़कर कारगर में बैंड कर दिया उन लोगों ने तुम दोनों को भजन भी नहीं दिया उसे समय नवरात्र का दिन चल रहा था और तुम दोनों ने नवरात्र लखनऊ में कुछ भी नहीं खाया और ना ही जल्पीय था जी करण अनजाने में ही सही लेकिन

तुम्हारा नो दोनों तक नवरात्र का व्रत हो गया और इस व्रत के प्रभाव से प्रश्न होकर मैं तुझे यहां वरदान देने आई हूं तब सुनती बोली हेमा अगर आप मुझे कोई वरदान देना 

चाहती हैं तो मेरे पति को कोड से मुक्त कर दीजिए तब मां दुर्गा ने कहा पुत्री नवरात्र के एक दिन का पूर्णिया तुम अर्पण करो तुम्हारा पति निरोग हो जाएगा फिर सुनती ने 

ऐसे ही किया और उसका पति ने रॉक हो गया यह देख सुनती देवी की स्तुति करने लगी सुनती की बातें सुनकर देवी बहुत प्रश्न हुई और फिर नवरात्र व्रत की विधि विस्तार से बताते हुए कहा है पुत्री नवरात्र में नो दिन तक विधिपूर्वक व्रत

करना यदि दिन भर का व्रत ना कर सके तो एक समय भजन करें विद्वान ब्राह्मण से पूछ कर घाट स्थापना करें और महाकाली महालक्ष्मी देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनके 

विधि विधान पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अध्ययन 9 दोनों में जो कुछ दान कर शक्ति हो वो जरूर करना नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है इसके 

बाद देवी अंतर्ध्यान हो गई तो मित्रों आपको नवरात्रि से चूड़ी यह कथा कैसी लगी नीचे कमेंट करके अवश्य बताएं 


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