Story of Nine Forms oF Durga : क्या है माँ दुर्गा के 9 अवतारों का अर्थ | 9 Avatars of Devi Durga Explained in Detailed in Hindi
दोस्तों सबसे पहले तो आपको नवरात्रि और आगामी श्री राम नवमी जी की ढेरों शुभकामनाएं । आज हम लोग मां दुर्गा जी के जो 9 अवतार हैं, जिनकी हम 9 दिन उपासना करते हैं,उनके पीछे के विशिष्ट ज्ञान को समझेंगे और जानने की
कोशिश करेंगे की मां के 9 अवतारों से हमारे मानव जीवन के विषय में क्या गूढ ज्ञान जानने को मिलता है। दोस्तों शाक्त संप्रदाय में मां दुर्गा को ब्रह्म के निराकार
रूप का सगुण स्वरूप माना जाता है । और ये दुनिया में शायद इकलौता ऐसा संप्रदाय है जहां पर ब्रह्मांड की उत्पत्ति के पीछे की जो शक्ति है उसको स्त्री रूप में देखा जाता है ।
दुर्गा जी की उपासना का इतिहास तो बहुत प्राचीन है । ना केवल पुराणों में, आगम ग्रन्थों में, इतिहास ग्रन्थों में जैसे की रामायण और महाभारत में मां दुर्गा का उल्लेख मिलता है, वहीं ऋग्वेद, अथर्ववेद, ताइत्तिरीय आरण्यक और देवी उपनिषद में भी उनका उल्लेख मिलता है ।
आज उनके 9 अवतारों के पीछे का जो रहस्य है, उसको जान लेते हैं ।दोस्तों सनातन धर्म में जब अवतारों की बात होती है तो जहां एक तरफ विष्णु जी के दशावतार प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी तरफ मां दुर्गा के 9 अवतार और जहां विष्णु जी के दशावतार पूरी मानवता के इवोल्यूशन को दर्शाते हैं,
जैसे उनका प्रथम अवतार मत्स्य रूप यह दिखता है की कैसे समुद्र से जीवन की उत्पत्ति हुई । उसके बाद उनका कुर्म अवतार की कैसे समुद्र से थल पर जीवन
आया, फिर वराह अवतार की कैसे जंगली जानवर बने, फिर नरसिंह अवतार की जानवर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई और उसके बाद आने वाले अवतार जैसे की
परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की, ये अवतार ऐसा दिखाते हैं की कैसे बौद्धिक क्षमता जो थी इंसान की, वो धीरे-धीरे बढ़ती गई और साथ में ही कैसे उनकी
आकांक्षा बढ़ती गई, तो जहां पर विष्णु जी का अवतार हमें पूरी मानवता के बारे में बताता है, वहीं पर जो दुर्गा जी के 9 अवतार हैं वो particular एक व्यक्ति के मतलब individual आदमी के, individual औरत के जो जीवन के अलग-अलग पड़ाव हैं|
उनको समझाते हैं, तो आइए एक-एक करके मां दुर्गा के हर एक अवतार के पीछे की गहराई को समझते हैं ।
प्रथम अवतार:
दोस्तों दुर्गा जी का प्रथम अवतार शैलपुत्री है और अगर आप नाम पर ध्यान दें तो इसमें दो चीज देखने को मिलती है: एक शैल और दूसरा पुत्री ।
शैल का मतलब
होता है पर्वत और पुत्री का मतलब आपको पता है daughter, तो शैलपुत्री का मतलब हो जाता है की दी डॉटर ऑफ डी माउंटेन मतलब पर्वत की पुत्री और ये
जो रूप है मां का ये सबसे प्रिमिटिव रूप है,
मतलब अभी वो पैदा हुई है और अगर इस अवतार की तुलना की जाए तो हम इस अवतार की तुलना एक नवजात शिशु
से कर सकते हैं जो तुरंत पैदा हुआ होता है और जब शिशु पैदा होता है तो अपने नाम से नहीं जाना जाता है, मां-बाप के नाम से जाना जाता है ।
इस अवतार का,
मां के इस अवतार का स्वयं का नाम नहीं है । वो अपने पिता के नाम से जानी जा रही हैं:शैलपुत्री ।
ऐसे ही बच्चे भी अपने पिता या मां के नाम से जान जाते हैं और अगर आप स्वरूप को देखें तो मां के केवल दो हाथ दिखाएं गए हैं और यूजुअली क्या होता है की मां
दुर्गा जी के चार हाथ या आठ हाथ [अष्टभुजा] या फिर 18 भुजाएं दिखाई जाती हैं ।
उनका विकराल रूप होता है लेकिन ये उनकी जो फॉर्म है यह सबसे आधारभूत स्वरूप है, अभी बस पैदा हुआ है ।
तो इसीलिए इनके दो हाथ दिखाएं गए हैं, एक हाथ में है त्रिशूल और एक हाथ में है कमल । तो त्रिशूल जो है वो विध्वंस प्रतीक है,
असुर मर्दन का प्रतीक है, वहीं
कमल जो है वह सौम्यता का प्रतीक है तो जैसे बच्चे में कई ढेर सारे पोटेंशियल होते हैं की बड़ा होकर क्या-क्या करेगा, एक नवजात शिशु में ।
वैसे ही मां दुर्गा में भी
बहुत पोटेंशियल है की जहां एक तरफ वो असुरों का मर्दन कर सकती हैं, त्रिशूल उठा सकती हैं, weapon उठा सकती हैं, वहीं दूसरी तरफ जो कमल है
वो इस
बात को दिखता है की मां शांति, आनंद, और धर्म की स्थापना भी कर सकती हैं । ये उनका पोटेंशियल है ।
तो ये सबसे आधारभूत स्वरूप है, पहला स्वरूप है । आप इसकी नवजात शिशु से तुलना कर सकते हैं ।
द्वितीय अवतार :
दोस्तों मां दुर्गा का द्वितीय अवतार जो है वह ब्रह्मचारिणी अवतार है और अगर इस अवतार की आप तुलना करें तो आप इस अवतार की तुलना एक विद्यालय जाने वाले
शिशु से कर सकते हैं ।
शिशु पैदा हो गया, शैलपुत्री, अब उसको विद्यालय जाना है क्योंकि अब जो उम्र है वो सीखने की सही उम्र है और अब हमें अध्ययन करना है।
कठिन अनुशासन से ब्रह्मचर्य का पालन करना है इसीलिए इस अवतार को ब्रह्मचारिणी बोला गया है ।
अगर आप प्राचीन भारत में देखें तो प्रथम जो 25 वर्ष होते थे, जब
आप विद्यालय में पढ़ते थे, गुरुकुल में पढ़ते थे, तो ब्रह्मचर्य का पालन करना होता था । उसे ब्रह्मचर्य आश्रम बोला जाता था,
इसलिए इस अवतार को भी ब्रह्मचारिणी
कहते हैं और अगर आप स्वरूप को देखें तो मां जो है, उन्होने सफेद वस्त्र को धारण किया है और सफेद वस्त्र इस बात को दिखाता है की हमें materialism से
दूर जाना है ।
ये उम्र जो हमारी है वो त्याग और तपस्या की है । पूरा focus हमको अध्ययन में लगाना है, इसलिए मां सफेद वस्त्र धारण की हैं और दोनों हाथों
में जिसमें एक में Kamandal है और एक में माला है, वो उनका तपस्विनी स्वरूप है मतलब यह जो स्वरूप है यह त्याग और तप का स्वरूप है ।
अपने जीवन को
उत्कृष्ट बनाने के लिए आपको प्रथम जो 25 वर्ष है इसमें मेहनत करनी होती है, सांसारिक प्रपंच से दूर जाना पड़ता है और ऐसा हर विद्यार्थी को करना पड़ता है ।
अगर उसे जीवन में सच में कुछ अच्छा करना है, कुछ अच्छी दिशा में आगे बढ़ाना है । इसीलिए इस स्वरूप की तुलना आप विद्यालय में पढ़ने वाले, गुरुकुल में पढ़ने वाले एक शिशु से कर सकते हैं यही मां दुर्गा के ब्रह्मचर्य अवतार के पीछे की मीनिंग है ।
तीसरा अवतार :
दोस्तों मां दुर्गा का तीसरा अवतार चंद्रघंटा है और यह मां का सबसे संपन्न स्वरूप है । जहां पर आपने देखा की शैलपुत्री में दो ही हाथ थे, ब्रह्मचारिणी में दो ही हाथ थे,
यहां पर मां के 10-10 हाथ हैं ।
और जहां कुछ हाथ शस्त्रों से सुशोभित हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ हाथों में कमल, घंटा, kamandal और पानी का कलश है ।
तो
यहां पर मां भक्ति और शक्ति से परिपूर्ण हैं। मां का यह जो स्वरूप है यह जैसे विद्यालय से, गुरुकुल से, जब बच्चा पढ़ लेता है और नौजवान हो जाता है और उसके पास ढेर सारी skills आ जाती है ।
अब वो जीवन में तैयार हो गया है किसी भी अपॉर्चुनिटी को grasp करने के लिए,
किसी भी तरह के संघर्ष के लिए, तो मां का यह स्वरूप जो है उस विद्यार्थी की तरह है जिसने पढ़ाई पूरी कर ली है जैसे माँ ने ब्रह्मचारिणी रूप में तपस्या की, त्याग
किया, और फिर उसके बाद जो है उनको इस तरह की ढेर सारी विद्याओं का ज्ञान हो गया और उसके बाद देखें तो मां के मस्तक पर तीसरी आंख भी खुल गई है
जो इस बात का प्रतीक है की मां अब किसी भी तरह के संघर्ष के लिए तैयार हैं । वो Vigil हैं, Vigilant हैं, अगर शत्रु आएंगे तो उनका दमन करेंगी और
अगर जरूरत पड़े तो धर्म की स्थापना करेंगी तो जिस प्रकार एक विद्यार्थी अपने जीवन के लिए पूर्णतया तैयार हो जाता है, ढेर सारी skills को बटोर लेता है, तो माँ का ये स्वरूप इस को रिप्रेजेंट करता है ।
चौथा अवतार:
दोस्तों मां दुर्गा का चौथा अवतार कूष्मांडा है और अगर आप कूष्मांडा नाम को ध्यान से देखें, उसका संधि विच्छेद करें तो 'Koo' का मतलब होता है 'छोटा',
लिटिल, 'Ushma' का मतलब होता है ऊर्जा या फिर heat और 'Anda' का मतलब तो आपको पता ही है, egg होता है । तो ये जो मां का स्वरूप है ये
कॉस्मिक Egg का स्वरूप है और ऐसा माना जाता है की जब कुछ नहीं था तब माँ ने ब्रह्मांड की रचना इसी स्वरूप से की थी तो इस स्वरूप की तुलना हम गर्भवती
महिला से कर सकते हैं की मतलब जैसे मां कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड को रचा वैसे ही अब गर्भवती महिला भी एक नए जीवन की रचना करने वाली है और अगर आप ध्यान
से देखें तो इस स्वरूप में माँ एक मटका को भी लिए हुए हैं और ऐसा माना जाता है की उसमें शहद या फिर अमृत होता है, और अगर आप ध्यान दें तो हमारी
पौराणिक कथाओ में मटके को गर्भ का प्रतीक माना जाता है । बहुत ढेर सारी कथाओ में आपको देखने को मिलेगा, सिंबॉलिक रूप से, की मटकी से शिशु उत्पन्न
हो रहे हैं तो इसलिए मटके को गर्भ का प्रतीक माना जाता है । इसलिए मां के स्वरूप में मटका है और मां के स्वरूप को एक गर्भवती महिला के स्वास्थ्य और शक्ति के सिंबल की तरह देखते हैं जो एक नए जीवन को उपजाने वाली है ।
पंचम अवतार :
दोस्तों हम नवरात्रि की पांचवें दिन मां दुर्गा के पंचम अवतार स्कंदमाता की उपासना करते हैं । अब जो माता शैलपुत्री के रूप में पुत्री थी, अब वो मां बन गई हैं । अब
उनकी पहचान जो है, वो एक मां के रूप में है इसलिए उनका नाम उनके पुत्र स्कंद जो की भगवान कार्तिकेय हैं, उनकी माता के होने से है । मतलब अब वो
स्कंदमाता है । तो ये जो रूप है, स्वरूप है मां सकंदमाता का, ये एक माँ का स्वरूप है । जब कोई गर्भवती महिला मां बन जाती है तो उसके स्वरूप की तुलना
इस स्वरूप से कर सकते हैं और यहां पर अगर आप देखें तो मां ममतामयी है, पुत्र वात्सल्य से परिपूर्ण है इसलिए यहां पर उनके हाथ में कोई शस्त्र नहीं दिखाए गये हैं ।
अभी उनका पूरा ध्यान अपने शिशु पर है । जैसे एक मां ममता से भर जाती है, ममतामय हो जाती है और अपने शिशु क ध्यान रखती है । इसीलिए मां सकंदमाता के
स्वरूप में आप देखें की उनकी गोद में उनके पुत्र स्कंद भगवान भी बैठे हुए हैं और यह मां का जो स्वरूप है यह मातृत्व का स्वरूप है इसीलिए स्कंदमाता को
Goddess of motherhood भी बोला जाता है । तो मां दुर्गा के इस स्वरूप की तुलना हम एक माता से कर सकते हैं जिसने अभी एक शिशु को जन्म दिया है ।
छठा अवतार:
दोस्तों मां दुर्गा का छठा अवतार कात्यायनी अवतार है और इसी रूप में माँ दुर्गा ने महिषासुर का मर्दन किया था । जैसे जब एक स्त्री मां बन जाती है तो वो
सर्वशक्तिशाली हो जाती है, सर्वशक्तिमान हो जाती है । अब वो किसी पे डिपेंड नहीं करती है । अपने बच्चों के लिए, अपने लिए, वो स्वयं में काफी होती है । तो
मां दुर्गा का स्कंदमाता के बाद मतलब जब वो मां बन चुकी है तो अब वो स्वयं में शक्तिशाली हो गई हैं, सर्वशक्तिमान हो गई हैं इसीलिए वो कात्यायनी रूप को
धारण करती हैं और कभी-कभी इस अवतार की शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए उनकी 18 भुजाएं भी दिखाई जाती हैं तो मां का ये जो स्वरूप है वो किसी भी स्त्री
के मां बनने के बाद जो उसके अंदर शक्ति आ जाती है उसका स्वरूप है । मां दुर्गा का यह शक्ति स्वरूप है इसलिए इस स्वरूप को Goddess of Power भी बोलते हैं।
सप्तम अवतार:
एक कालरात्रि का अर्थ होता है की रात्रि की तरह काला और दूसरा अर्थ होता है कालरात्रि का की काल को निगल जान वाला । तो ये जो मां का रूप है ये बहुत
प्रचंड प्रलय रूप है । मतलब यहां पर अंधेरे से अगर आप meaning निकाले तो अंधेरे का मतलब है की सृष्टि का प्रलय हो गया है । जहां पर काल सृष्टि को लील
रहा है वहां काल को लील रही है काली । तो माता दुर्गा का जो रूप है, ये बहुत क्रोध रूप है और रौद्र रूप है । इसमें मां दुर्गा के सब्र का बांध टूट चुका है और
इसी रूप में उन्होने Raktabeej के रक्त को पीकर Raktabeej का वध कर दिया था और उनके क्रोध की सीमा इतनी बढ़ गई थी की स्वयं उनके पति शिव जी को
आना पड़ा था उनको संभालने के लिए । तो माता दुर्गा का ये बहुत रौद्र रूप है जो ये दर्शाता है की जहां एक स्त्री अपनी ममता से एक नए जीवन को रच सकती है,
ब्रह्मांड को रच सकती है, वही समय आने पर धर्म की स्थापना के लिए रुद्र रूप धारण करके जीवन को ग्रहण भी कर सकती है । जब ब्रह्मांड की रचना हो सकती
है तो ब्रह्मांड का प्रलय भी हो सकता है । इसलिए जहां पर एक स्त्री एक शिशु को जन्म दे सकती है वहीं जरूरत पढ़ने पर वो जीवन को ग्रहण भी कर सकती है। मां
दुर्गा का यह स्वरूप स्त्री का सबसे विकराल स्वरूप है । दोस्तों पंचम अवतार में मां दुर्गा माता बनने के बाद, स्कंदमाता बनने के बाद, अपनी शक्तियों के उत्कृष्ट पद पर चली जाती हैं ।
जैसे की उन्होंने कात्यायनी रूप लिया जो की एक सर्वशक्तिशाली रूप है । उसके बाद उन्होंने कालरात्रि रुप लिया जो उनका रौद्र और बहुत क्रोध का रूप है । तो ये जो रूप हैं,
माता दुर्गा के सबसे परिपूर्ण रूप हैं, कंप्लीट रूप हैं, उनके सबसे उग्र रूप हैं तो इसलिए आप देखिए की षष्ठी, सप्तमी के बाद मां दुर्गा की जो पूजा अर्चना है, उपासना है, वो बहुत तीव्र हो जाती है ।
सप्तमी, अष्टमी, नवमी का बहुत महत्व है लेकिन जहां पर मां दुर्गा ने कात्यायनी और कालरात्रि रूप में अपने रौद्र रूप की पराकाष्ठा को दिखाया वहीं उन्होंने ये भी बताया की वो शांति, सुंदरता, और सौम्यता की भी पराकाष्ठा पर जा सकती हैं और वही ये स्वरूप है महागौरी का। तो
अष्टम अवतार:
मां दुर्गा का जो अष्टम अवतार है वो महागौरी का अवतार है और महागौरी के स्वरूप में वो अपने पति शिव जी के साथ और अपने पुत्रों गणेश जी और कार्तिक जी के
साथ एक पारिवारिक सौहार्द के रूप में रहती हैं तो यह जो स्वरूप है मां दुर्गा का वो किसी भी स्त्री या पुरुष को उसके परिवार के उन्नति और सुख के प्रति जो
उसके उत्तरदायित्व हैं उसको याद दिलाता है । माँ दुर्गा का ये ये स्वरूप प्रेम पूर्ण स्वरूप है । अब हम अंतिम स्वरूप की चर्चा कर लेते हैं ।
नवम रूप:
पीढियों को धर्ममार्ग पर प्रशस्त करेंगी, मतलब मां दुर्गा के इस स्वरूप ने ब्रह्मांड की हर चीज को जान लिया है, ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर ली है, अब उनके लिए
कोई चीज अगम्य नहीं है । अगर उनके भक्त उनसे कुछ भी मांगे, चाहे लौकिक या परलौकिक, हर चीज को वो पूर्ण करने में समर्थ हैं ।
जैसे हमारी नानी और दादी होती हैं की नाती पोतों के लिए कुछ भी कर जाती हैं । कितना भी कर जाएँ कम लगता है । इसी प्रकार से मां दुर्गा का ये स्वरूप है ।
सिद्धिदात्री स्वरूप भक्तों पर अनंत कृपा बरसाने वाला स्वरूप है । यह मां दुर्गा का अंतिम पूर्ण, अनंत, असीम और दयावान स्वरूप है । तो दोस्तों मैं आशा करता हूं की मां दुर्गा के 9 अवतारों का हमरे जीवन के विभीन पड़ावों के संदर्भ में क्या अर्थ है, ये आपको अच्छे से समझ में आ गया होगा ।