शिव पूजा का महत्व: सावन में आराधना क्यों की जाती है | Why is Shiva Puja Important During Sawan

शिव पूजा का महत्व: सावन में आराधना क्यों की जाती है 






सावन में शिव पूजा क्यों की जाती है  सावन के पावन महीने में शिव पूजा क्यों होती है एक विस्तृत विश्लेषण




जय हो ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय कि कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम सदावसंतम हृदयारविंदे भवम भवानी सहितं नमामि



अर्थात जो कपूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं जो करुणा के अवतार हैं जो सारे संसार के साथ अर्थात सारे संसार को आश्रय प्रदान करने वाले हैं जिन्होंने भोजन को अर्थात सर्पों को अपने गले में हार 


बनाकर धारण किया है वह भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे हृदय में निवास करें माता भवानी सहित भगवान शिव भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूं



आज हम पौराणिक कथा के माध्यम से

जानकारी देने का प्रयास करेंगे कि सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा क्यों की जाती है और इसका क्या महत्व है इस संदर्भ में पहला प्रसंग शिव महापुराण से आता है जिसका वर्णन हम अपने 


पिछले भाग में कर चुके हैं कि देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन किया जाता है जिसमें कालकूट विष निकलता है और भगवान शिव उस विष को अपने कंठ में धारण कर लेते हैं और 

विषपान करने के कारण भगवान शिव का ताप अत्यधिक बढ़ जाता है तब इंद्र देव भगवान शिव पर जल की वर्षा करते हैं और भगवान शिव का ताप ठंडा हो जाता है यह सावन का महीना होता है जब इंद्र देव


भगवान शिव पर जल बरसाते हैं भगवान शिव देवराज इंद्र प्रति प्रति होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं तो फिर भगवान शिव देवराज इंद्र से कहते हैं कि तुमने इस सावन के महीने में मुझ पर 

जलवर्षा कर मुझे शीतलता प्रदान की है तो आज से यह पावन महीना मेरे लिए अति प्रिय हो गया है अतः जो भी भक्त इस पावन महीने में मुझे जल अर्पित करेगा उस पर मेरी अति विशेष कृपा 


रहेगी 100 तभी से सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है वैसे तो जस्ट और आषाढ़ के महीने में भयंकर तपिश के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है और सभी प्रकार के जीव-जंतु गर्मी बढ़ने

के कारण परेशान हो जाते हैं और फिर सावन के महीने में भगवान इंद्र वर्षा करते हैं जिससे कि धरती पर रहने वाले सभी प्रकार के प्राणियों और जीव-जंतुओं को बहुत शांति मिलती है और वे 


प्रसन्न हो जाते हैं और भगवान इंद्र की जय-जयकार करते हैं वो कहते हैं कि सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ विचरण करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं और इसी समय भक्तों 


को भी उनकी पूजा करने का अवसर मिल जाता है इस संदर्भ में दूसरा प्रसंग भी शिव महापुराण से ही आता है कि जब माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन


उन्होंने अपने जमाता शिव और पुत्री सती को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया लेकिन फिर भी माता सती भगवान शिव से अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शामिल होने की जिद 

करती हैं और शिवजी के काफी समझाने के बाद भी सती अपने पिता के उस यज्ञ में बिना बुलाए ही चली जाती हैं जब सती यज्ञ स्थल में पहुंची तो दक्ष प्रजापति ने शिवजी की घोर निंदा की और 


अपमान भरे शब्द कहे कि इस पर माता सती को अत्यंत दुख हुआ और उन्होंने हर जन्म में भगवान शिव भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने की इच्छा रखते हुए अपने आपको यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिया और

अपने प्राण त्याग दिए इसके बाद शिव गण यज्ञ को तहस-नहस कर देते हैं और भगवान शिव को प्रजापति दक्ष पर अत्यंत क्रोध आता है और वे त्रिशूल से उसका धड़ अलग कर देते हैं कि उसके 

बाद काफी कुछ घटना घटित होती है जिसका वर्णन हम आने वाले समय में करेंगे फिर कुछ समय पश्चात पर्वतराज हिमालय और रानी मैना के घर माता सती का दूसरा जन्म पार्वती के रूप में होता 


है पार्वती भगवान शिव की बहुत भक्त थी और जब पार्वती युवा हुई तो उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की कई वर्षों की घोर तपस्या करने के बाद सावन के महीने में भगवान शिव

पार्वती पर प्रसन्न होते हैं और उन्हें दर्शन देते हैं कि पार्वती की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पार्वती से वर मांगने के लिए कहा इस पर पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि नात मैंने 


आपको पति रूप में पाने के लिए ही तपस्या की है कि अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न है और मुझे वरदान देना चाहते हैं तो मुझे वरदान दें कि मैं जन्म-जन्मांतर के लिए आपकी पत्नी मन्नू और 

पति के रूप में मैं आपकी सेवा करती रहूं इस पर भगवान शिव-पार्वती के वर मांगने पर अति प्रसन्न होते हैं और पार्वती को मनोवांछित वरदान देते हैं और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं

तो फिर भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि जिस प्रकार तुमने तपस्या करके सावन के महीने में मुझे प्राप्त किया उसी प्रकार अगर कोई अविवाहित कन्या सावन के महीने में जल से अभिषेक 


करके चंदन और कुमकुम का लेपन लगाकर मेरा पूजन करेगी तो उसको भी मनचाहे वर की प्राप्ति होगी तभी से अविवाहित युवतियां सावन के महीने में उपवास रखकर शिवलिंग पर दूध और जल 

चढ़ाकर चंदन और कुमकुम का लेप लगाकर भगवान शिव की पूजा भगवान शिव की पूजा करती हैं जिससे भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं और उन्हें मनचाहा वर देकर उनकी मनोकामना पूरी करते हैं कि वैवाहिक महिलाएं और पुरुष अपने दांपत्य



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जीवन को सुखमय बनाने के लिए संतान प्राप्ति के लिए घर में आने वाले कष्ट रोग इत्यादि को दूर करने के लिए व्यापार व नौकरी में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए और विद्यार्थी अपनी 

अच्छी शिक्षा प्राप्ति के लिए सावन के महीने में उपवास रखकर भगवान शिव को जल अर्पित करके पूजा-अर्चना करते हैं जिससे कि भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न होते हैं और अपने 


भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करके उनके जीवन को सुखमय बना देते हैं हैं तो यह थी सावन के पावन महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा के संबंध में एक छोटी सी जानकारी 

हम आशा

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